दूनिया
के टाप 200 विश्वविधालयों
में भारत का एक भी विश्वविधालय शामिल नहीं है। दुनियां में जितने भी मौलिक शोध हो
रहे हैं, अगर
उनको इकट्टा गणना किया जाय तो उसमें भारत का प्रतिशत 0.30 प्रतिशत
है।अर्थार्त आधा प्रतिशत भी नहीं है। दुनियां के व्यापार में भारत का प्रतिशत 0.70 प्रतिशत
है । इसपर तुर्रा यह की सबसे अधिक सोने की खपत भारतीय स्तिरियों की । पेट्रोल
विदेशों से आता है । सेविंग ब्लेड तक हम बाहर से मंगाते हैं । जानते हैं ? ये
वही लोग है जो अपने को लायक घोषित करते हैं !!!!! जैसे
कुछ बन्दर कहते हैं कि मेरी सबसे ज्यादा लाल है। कुछ बन्दरों की लाल होती है, तो
वे कहते हैं कि मेरी लाल है तेरी लाल नहीं हैं। ब्राह्राण अपने को विकसित मानते
हैं और जब उनकी योग्यता की तुलना विकसित देशों से करते हैं तो उनकी योग्यता नदारत
है। भारत के ब्राह्राण राष्ट्रपति कह रहे है कि भारत के विश्वविधालयों में मौलिक
शोध होते ही नहीं हैं जबकि भारत के जितने भी विश्वविधालय हैं उनके सारे वार्इस
चांसलर लगभग ब्राह्राण ही हैं। उन विश्वविधालयों के सारे विभाग प्रमुख लगभग
ब्राह्राण हैं, विश्वविधालयों में छात्रों के
शोध करवाने वाले सारे प्रोफेसर लगभग ब्राह्राण हैं । इससे प्रमाणित होता है कि वे
जो कह रहे हैं वो सच्चार्इ पर पर्दा डालने के लिए कह रहे हैं। ब्राह्राणों ने जो
नाजायज कब्जा किया। यह लोगों को ऐसा नहीं लगना चाहिए। बलिक लोगों को ऐसा लगना
चाहिए कि जो कुछ भी उनका कब्जा है वो जायज है। क्यों जायज है? क्योंकि
उन्होंने मेरिट के द्वारा इसे प्राप्त किया है। 15 अगस्त, 1947 को
भारत वर्ष में प्रशासन में 3 प्रतिशत
ब्राह्राण, 33 प्रतिशत मुसलमान
और 30 प्रतिशत
कायस्थ थे। जैसे ही ब्राह्राण भारत का शासक बन गया । जो अंग्रेजों की दृषिट से
नालायक थे वो भारत के नियंत्रणकर्ता होने के बाद सभी लायक हो गए और बाकी सारे
नालायक हो गए । कोलकत्ता होर्इ कोर्ट में प्रीवी काउनिसल हुआ करती थी। अंग्रेजों
ने नियम बनाया था कि कोर्इ भी ब्राह्राण प्रीवी काउनिसल का चेयरमैन नहीं हो सकता
है। क्यों नहीं होगा? अंग्रेजों ने लिखा है कि
ब्राह्राणों में जूडिसियस कैरेक्टर (न्यायिक
चरित्र) नहीं
होता है। आप लोगों को समझना बहुत जरूरी है कि इसका क्या मतलब होता है? जूडिसियस
कैरेक्टर का मतलब होता है कि जब दो वकील बहस कर रहे हैं तो जज पहले वकील का बहस
ध्यानपूर्वक सुनता है, फिर दूसरे वकीलें का बहस
ध्यानपूर्वक सुनता है। दोनों वकीलों का सुनने बाद वह निर्णय करता है कि सही क्या
है ? तब
फिर न्यायपूर्वक फैसला देता है। इसे जूडिसियस कैरेक्टर कहते है।सुप्रीम कोर्ट का
चीफ जसिटस ए.एस.आनंद
तब हुआ करते थे उनके बेंच में तमिलनाडु का एक वकील बहस कर रहा था । जस्टिस ए.एस.आनंद
उस वकील की बात सुन ही नहीं रहे थे तो उस वकील ने जूता निकाला और ए.एस.आनंद
को फेंक कर मारा । ए.एस.आनंद
ने तुरंत आदेश दिया, इसको गिरफ्तार करो। फिर
गिरफ्तार करके उस वकील को कटघरे में खड़ा किया गया और पूछा गया कि तुमने जूता
क्यों मारा ? उस वकील ने जबाब दिया कि जज का
ध्यान मेरे बहस की तरफ नहीं था । इसलिए उसका ध्यान अपनी बहस की तरफ केनिद्रत करने
के लिए जूता मारा । यह सुप्रीम कोर्ट के चीफ जसिटस ए.एस. आनंद
की बात कर रहा हूँ। अंग्रेज ब्राह्राणों के बारे में जो कहते थे , वो
गलत नहीं कहते थे। ये उसका एक उदाहरण है। ब्राह्राणों में जूडिसियस कैरेक्टर नहीं
होता है। जूडिसियस कैरेक्टर का मतलब होता है ”निष्पक्षता
का भाव अर्थात निष्पक्ष रहकर, दोनों गवाहों और
सबुतों को सुनकर तथा दस्तावेजों को देखकर, कानून
और न्याय के सिद्धान्त के अनुसार अपनी मनमानी ना करते हुए जो सही है, उसे
न्याय दे, उसे
‘जूडिसियस
कैरेक्टर कहते हैं। ये ब्राह्राणों के अन्दर नहीं है। यह अंग्रेजों का कहना था ।
हार्इ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पर भी ब्राह्राणों ने कब्जा कर लिया है। हार्इ कोर्ट
में 600 के
लगभग जज हैं और एस.सी., एस.टी., ओबीसी
एवं मार्इनोरिटी के सिर्फ 18 के लगभग जज है। ब्राह्राण तथा
तत्सम ऊँचे जाति के लोगों के लगभग 582 जज
हैं। ब्राह्राणों का न्यायपालिका पर अनियंत्रित नियंत्रण है। इसलिए संविधान द्रोह
करनेवाले ऐसे जजों को चौराहे पर लाकर उनका उचित सम्मान करना चाहिए ?? मैं
अच्छी तरह जनता हूँ की मेरे ब्राह्मणो का विरोध करना ठीक वही नारा है जो गांधी ने
अंग्रेजों भारत छोड़ो वाला नारा था ‘ब्राह्राणों
भारत छोड़ो ! इसका विरोध वो कर भी नहीं सकते
न । ब्राह्राणों को लगता है कि ऐसा करना खतरा है। वे जानते हैं की जो ब्राह्मणो का
विरोध कर रहा है अगर उसका विरोध किया तो उसकी पोल खुल जाएगी इसलिए वो हमारे लोगों
को लगातार प्रचार के द्वारा ये मनवाना चाहते है कि उन्होंने योग्यता के आधर पर यह
कब्जा किया है। ऐसा प्रचार करने के पीछे दूसरा एक मकसद है। वह दूसरा मकसद है कि वो
हमारे लोगों के अंदर में हीन भावना का निर्माण करना चाहते हैं। कोर्इ मनोवैज्ञानिक
डाक्टर से पूछो कि ये हीन भावना क्या होती है? तो
वह बताएगा कि हीन भावना एक बिमारी होती है। इसका मतलब है कि अगर निरंतर प्रचार करो
कि तुम लायक नहीं हो, तुम लायक नहीं हो तो सामने वाले
के अंदर हीन भावना धीरे-धीरे पनपने लगती है। अर्थात
लगातार प्रचार करना कि तुम लायक नहीं हो इसके पीछे का उनका मकसद यही है कि वे
हमारे लोगों के अंदर हीन भावना निर्माण करना चाहते हैं और जब किसी के अंदर हीनता
का निर्माण हो जाता है तो वह खुद ही स्वीकार कर लेता है कि मैं नीच हूँ और कमजोर
हूँ । मैं इसी के लायक हूँ और मुझे ऐसे ही रहना चाहिए । आप लोगों को मालूम नहीं है
कि यह कितनी भयानक बात है। मगर यह भयानक बात लगातार प्रचार करने से लोगों के मन और
मसितष्क में पेनिट्रेट (लगातार कोशिश करके बातें दिमाग
में घुसाना) की जा सकती है।
यह
बहुत भयंकर षडयंत्र का हिस्सा है और इसलिए इस षडयंत्र को समझना जरूरी है। यदि आप
इस षडयंत्र के विरोध में कोर्इ आन्दोलन खड़ा करना चाहते हो तो वह आन्दोलन तब तक
खड़ा नहीं किया जा सकता है जब तक आप इस षडयंत्र को नहीं जानते हैं। तब तक आप कोर्इ
भी प्रतिकार नहीं कर सकते हैं। पहले इस षडयंत्र को जानना होगा, फिर
इस षडयंत्र को पहचानना होगा, फिर इसके विरोध
में प्रतिरोध एवं विरोध संभव है। इस बात को जानने और समझने के लिए ये बात मैं
आपलोगों को बता रहा हूँ।
* भारत
को मैंनेज करने का काम ब्राह्राण कर रहें हैं शंकरा चर्या बनकर और 1925 मे
आरएसएस की स्थापना कर के । भारत में शासन करने का काम ब्राह्राण कर रहे हैं, भारत
का सारा नियंत्रण ब्राह्राण कर रहे हैं, भारत
का सारा प्रशासन ब्राह्राण चला रहे हैं, संसद
में बहुमत ब्राह्राणों के नियंत्रण में हैं, देश
के सारे संसाधन ब्राह्राणों के नियंत्रण में हैं, ब्राह्राण
68 सालों
से देश को चला रहे हैं और देश को चलाने वाले ब्राह्राण कह रहे हैं कि ये दलित लोग
नालायक हैं। तो ब्राह्राणों तुम इस देश को 68 सालों
से चला रहे हो, तो तुम्हारे नियंत्रण में ये
लोग नालायक कैसे हो गए ? देश की सारी-की-सारी
जिम्मेवारी तो ब्राह्राणों की है और जिम्मेदारी तय की जा सकती है कि वही जिम्मेदार
है । अगर वही जिम्मेदार है तो निशिचत रूप से दूसरों को नालायक नहीं कहा जा सकता
है। उनके पास मेरिट नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता है। इसके बावजूद भी ब्राह्राण यह
प्रचार कर रहे हैं कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित
जनजाति, ओबीसी
और इनसे धर्म-परिवर्तित अल्पसंख्यक लोग लायक
नहीं हैं। तो ब्राह्राण ऐसा प्रचार क्यों कर रहे हैं ? यह
सोचने का सवाल है । ब्राह्राण खुद ही इन सारी बातों के लिए जिम्मेदार है और जो लोग
जिम्मेदार हैं, वो लोग खुद ही ऐसा प्रचार कर
रहे हैं । ऐसा प्रचार करने के पीछे निशिचत ही इसका अलग मकसद है। इसका क्या मकसद हो
सकता है? पहली
बात तो यह है कि जो लोग इसके लिए जिम्मेदार हंै वो अपनी जिम्मेदारी दूसरों के ऊपर
थोपना चाहते हैं। यह पहली बात है जो विश्लेषण करके मैं आपको समझा रहा हूँ।
बहुसंख्य लोग ये बातें नहीं जानते हैं। मैं विश्लेषण करके एवं सिद्ध करके बता रहा
हूँ कि शासक वर्ग (ब्राह्राण) इसके
लिए जिम्मेवार है। मगर बहुसंख्य लोग इस बात को नहीं जानते है। अगर उनके सामने यही
बातें बार-बार कही जाए तो क्या होगा ? बहुसंख्य
लोगों को यह लगने लगेगा की वास्तव में हम लोग नालायक हैं।
एक
बार अनुसूचित जाति का एक बडे़ र्इंजिनियर से हमारी चर्चा हो रही थी । हमने उनसे
कहा कि ऐसा – ऐसा कर के देश की सारी
व्यवस्थाओं पर ब्राह्राणों ने कब्जा कर लिया है। तो उस र्इंजिनियर ने मुझसे कहा कि
हाँ ब्राह्राणों के पास मेरिट है इसलिए उन्होंने इतना कब्जा किया हुआ है । हमारा
ही आदमी यह बात कह रहा है। उसकी यह राय बनी ब्राह्राणों द्वारा लगातार
प्रोपागेण्डा (प्रचार) करने
की वजह से हमारे लोगों के मन में ये गलत धारणा धर कर गयी है, ऐसा
मनवाने में वे लगातर प्रोपगेण्डा की वजह से सफल हो जाते हैं। हमारे अपने ही लोग इस
बात को मानने लग लाते हैं कि हाँ वो लायक हैं और लायक होने की वजह से सारी
व्यवस्थाओं पर काबिज हैं ।
ब्राह्राण
सारी व्यवस्थाओं पर काबिज है, मगर नाजायज
तरीके से काबिज है। लोकतंत्र में अल्पसंख्य लोग बहुसंख्य लोगों पर राज नहीं कर
सकते हैं । मगर वो राज कर रहे हैं । बलिक व्यवस्था पर कब्जा उनका है और लोकतंत्र
में कब्जा जायज नहीं माना जा सकता है। लोकतंत्र में हर कब्जा नाजायज होता है। इसे
जायज नहीं कहा जा सकता है। ऐसे परिसिथति में लोगों में लगातार प्रचार करने से कि
वे लायक हैं और हम नालायक हैं, अगर ये कब्जा
उन्होंने कर लिया है तो यह कोर्इ जायज तरीके से नहीं किया है। ब्राह्राण तो इस
तरीके को जायज बनाने के लिए कि वे जायज हैं, उन्होंने
जो किया वह सही है और इसका कारण है कि उनके पास मेरिट है, और
वे लायक हैं। ऐसा लगातार प्रचार करने की वजह से हमारे लोग भी यही बात कहने लगते
हैं कि हाँ, ब्राह्राणों के पास मेरिट है और
इस वजह से वे व्यवस्था पर काबिज हैं। ब्राह्राण हमारे लोगों के दिमाग में ऐसा
प्रस्थापित करने में कामयाब हो गए कि वे जायज हैं। इसलिए हमलोग यह प्रचार करें कि
उनका यह कब्जा नाजायज है, जायज नहीं है। लोकतंत्र में ये
कब्जा जायज नहीं माना जा सकता है। ब्राह्राणों के लगातार प्रचार करने की वजह से वे
हमारे लोगों के मन और मसितष्क पर ये छाप छोड़ना चाहते हैं, ये
विचार हमारे लोगों के दिमाग में घुसाना चाहते हैं कि व्यवस्था पर उनका जो नियंत्रण
है वो उनकी योग्यता की वजह से है और इसके लिए उन्होंने कोर्इ नाजायज तरीके का
उपयोग नहीं किया है।
दूसरी
बात, ब्राह्राण
अपनी तुलना एस.सी., एस.टी, ओबीसी
और मार्इनारिटी से करता है और खुद को कहता है कि वह बहुत लायक एवं मेरिटोरियस है।
जब ब्राह्राण की तुलना अमेरिका या यूरोप से होती है तो क्या होता है? अमेरिका
और यूरोप के लोग ब्राह्राणों को साबित करते हैं कि यह तो सिडयूल्ड कास्ट है।
अमेरिका में जो भारतीय लोग हैं उनको एशियन कहते हैं। ब्राह्राणों को भी वे लोग
एशियन कहते हैं। गांधीजी हमारे लोगों को हरिजन कहते थे और ऐशियन और हरिजन में
कोर्इ अंतर नहीं है। अमेरिका में ब्राह्राण एशियन है और भारत में सिडयूल्ड कास्ट
हरिजन है तो ऐशियन और हरिजन दोनाें बराबर हैं। इसका मतलब अमेरिका ब्राह्राणों को
हरिजन कह रहा है। ब्राह्राण हमको हरिजन कहता है और अमेरिका ब्राह्राणों को हरिजन
कहता है। अमेरिका के लोग ब्राह्राणों को अमेरिका का नागरिक होने के बावजूद भी
हरिजन कहते हैं। ये बातें उदाहरण के लिए आपको तुलना करके बता रहा हूँ । सच मे
ब्राह्मण के ब्रह्मंवाद का यही खात्मा है।
अफ़ज़ल खान
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